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भारत उड्नु ४ दिनअघिनै प्रचण्डले भारतीय मिडियालाई दिए यस्तो सन्सनीपूर्ण अन्तरवार्ता ! (अन्तरवार्तासहित)

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भारत उड्नु ४ दिनअघिनै प्रचण्डले भारतीय मिडियालाई दिए यस्तो सन्सनीपूर्ण अन्तरवार्ता ! (अन्तरवार्तासहित)

Artha Sarokar

२६ भाद्र २०७३, आईतवार

पढ्न लाग्ने समय: १३ मिनेटभन्दा कम


एजेन्सी– प्रधानमन्त्री पुष्पकमल दाहाल प्रचण्डले आफु भारतसँगको सम्बन्ध थप सुधार र विकास गर्नकै लागि भारत भ्रमणमा जान लागेको बताएका छन् । भारतीय हिन्दुस्तान टाइम्सका प्रधान सम्पादक शशि शेखर र राजनैतिक सम्पादक विनोद बन्धुसँगको अन्तवार्ताका क्रममा उनले सो कुरा दोहोर्याएका हुन् ।

नेपाल भारतबीचको सम्बन्ध पछिल्लो साल निकै चिसिएको बताउँदै प्रधानमन्त्री दाहालले अब दुई देशबीचको सम्बन्ध सामान्य हुँदै जाने दाबी गरेका छन् । ‘आफ्नो भारत भ्रमणको उद्धेश्यनै २ देशबीच विश्वासको आधार तयार गर्नु हुनेछ र यो भ्रमण ऐतिहासिक समेत हुनेछ,’ उनले भनेका छन् ।

भारत सरकार र त्यसको नेतृत्वसँग जोडिएको एउटा प्रश्नको जवाफमा प्रधानमन्त्री दाहालले भारतीय प्रधानमन्त्री र आफ्नो व्यक्तिगत व्यवहार धेरै मेल खाने समेत बताएका छन् । यद्यपि, उनले मोदीजी र आफ्नो विचारमा भने केही फरक रहेको बताएका छन् । प्रधानमन्त्री दाहालले भारतीय प्रधानमन्त्री मोदीलाई विशाल भारतको बहुमत प्राप्त प्रधानमन्त्री भएको भन्दै निकै प्रशंसा समेत गर्न भ्याएका छन् ।

प्रस्तुत छ, प्रधानमन्त्री दाहालले हिन्दी भाषामा दिएको अन्तरवार्ताः
मोदी जी और मेरी केमेस्ट्री मिलती है
‘प्रचंड’
सरी बार नेपाल की सत्ता संभालने के बाद पुष्पकमल दाहाल ‘प्रचंड’ के सुरबदले हुए हैं। कभी चीन समर्थक माने जाने वाले ‘प्रचंड’ अब भारत से दोस्तीके हामी हैं। काठमांडू में उनके राजकीय निवास ‘सिंह दरबार’ में ‘हिंदुस्तान’ के प्रधान संपादक शशि शेखर और राजनैतिक संपादक विनोद ‘बंधु’ने तमाम मुद्दों पर सीधे सवाल किए तो नेपाली प्रधानमंत्री ने भी बड़ी बेबाकीसे जवाब दिए। पद संभालने के बाद किसी भी स्वतंत्र देशी-विदेशी मीडिया समूहसे यह उनकी पहली बातचीत थी। पेश है पूरी बातचीत:

आप नेपाल में लोकतंत्र को लाने वाले लोगों में एक हैं। नेपाल में पिछले द्दछ साल में ज्ञड सरकारें आई-गईं। राजशाही खत्म होने के बाद नौ साल में आठप्रधानमंत्री बदल गए। आपका लोकतंत्र क्या सही रास्ते पर जा रहा है ?

देखिए, आपने जो सवाल रखा यह मेरी दृष्टि में बहुत महत्वपूर्ण औरसंवेदनशील है। इस समय नेपाल की स्थिति संक्रमणकालीन है। हमने शांति समझौताकर बहुत बड़े राजनीतिक परिवर्तन का बीड़ा उठाया है, इसको स्थिर करने के लिएकाफी मेहनत की जरूरत है। शांति प्रक्रिया का सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा था, लड़ाई लड़ने वालों को इसमें शामिल करना, उनके हथियारों को ‘मैनेज’ करना। येबड़ी बात थी, जिसे हमने सफलतापूर्वक किया। इसके बाद नौ सरकारें बनी हों याआठ, यह महत्वपूर्ण नहीं है। इसी दौरान काफी चुनौतियों के बीच हमने संविधानकी भी घोषणा की। अभी काफी कुछ करना शेष है लेकिन स्थिति उतनी निराशाजनकनहीं है, जितनी आपके सवाल से झलक रही है।

क्रान्ति के बाद कुछ लोगों को लगा था कि आप दक्षिण एशिया के नेलसन मंडेला हैं पर ऐसा न हो सका, कहाँ चूक रह गयी ?

हमारी शांति प्रक्रिया बहुत अनोखी है। हमारे आंदोलन और नेलसन मंडेला केआंदोलन में समानता और असमानता, दोनों हैं। समय का अंतर है और मूलसिद्धांतों में भी फर्क है। जैसा शांति समझौता करके हम आगे बढ़े हैं, वहअंतरराष्ट्रीय साम्यवादी आंदोलन के लिए अनोखी बात है। यह बहुत बड़ा प्रयोगभी है। माओवादी आंदोलन को सरकार तक पहुंचाने में बहुत जोखिम भी था।

आपने एक  लाल झंडे के तले आंदोलन की अगुवाई की। आज कम्युनिस्ट पार्टी में थोड़ाबिखराव नजर आता है। मतभिन्नता नजर आती है। उसे जोड़कर रखने के लिए क्या करनाचाहिए ?

यह एक बड़ा प्रयोग था, इसलिए बहस तो लाजिमी थी। उसे जिस तरह एकीकृत रखनेकी जरूरत थी, उस तरह हम सफल नहीं हुए। पार्टी में बिखराव हुआ। विभाजन कीशृंखला दिखाई दी। अलग होने वाले जो ‘ग्रुप’ थे, उन सबको इकट्ठा करके हमनेफिर से ‘माओइस्ट सेंटर’ नाम से एक पार्टी बनाई। सबकी सोच में समानता लानेपर यह संभव हो सका। मेरी ‘लीडरशिप’ में ‘पीपुल्स वार’ की शुरुआत हुई। दससाल तक लड़ाई चली, फिर मेरे ही नेतृत्व में शांति प्रक्रिया सम्पन्न हुई।पहले चुनाव में मेरी ही पार्टी अव्वल रही और मुझे पहले प्रधानमंत्री के रूपमें काम करने का अवसर मिला। मेरी ही लीडरशिप के दौरान पार्टी का विभाजन भीहुआ, फिर मेरी अगुवाई में ही एकता प्रक्रिया चली और अब दोबाराप्रधानमंत्री के रूप में काम कर रहा हूं। द्दण्(द्दछ साल के अंदर इतना ज्यादाराजनीतिक बदलाव और उतार(चढ़ाव बहुत कम देखने को मिलता है। नेपाल में हम जोकर रहे हैं, आपातकाल से शांति फिर सरकार का नेतृत्व करना, फिर विभाजन, फिरएकता। एक ही लीडरशिप में। मुझे लगता है कि यह लीडरशिप का एक मॉडल क्रिएट होरहा है।

आप भारत जा रहे हैं, इस यात्रा से क्या उम्मीदें हैं ?
भारत के साथ विश्वास का मजबूत आधार तैयार करने की जरूरत है। नेपाल(भारतसंबंध की दृष्टि से पिछला साल अच्छा नहीं रहा था। इस दौरान आपसी शक और भ्रमबहुत ज्यादा बढ़ा। संविधान की घोषणा के समय हुई नाकेबंदी से लोगों को काफीदिक्कतें हुईं। मुझे लगता है कि अब संबंध सामान्य होने की ओर हैं। मेरेभारत भ्रमण का प्रमुख मक़सद यही है कि दोनों देशों के बीच नया विश्वास बने।इसलिए यह दौरा ‘गुडविल विजिट’ जैसा रहेगा। जिस प्रकार से तैयारी हो रहीहै, मुझे पूरा भरोसा है कि ये भ्रमण दोनों देशों के संबंधों में गरमाहटलाने के लिए ऐतिहासिक होगा।

मैं पहले भी गया था प्रधानमंत्री के रूप में, लेकिन उस समय मेरी पार्टीकी स्थिति, देश की परिस्थिति और आज के हालात में काफी अंतर है। उस समयक्रांति और युद्ध का जबरदस्त असर मेरे दिमाग पर था। राजनीति के मिजाज कोअच्छी तरह से समझने के लिए भी मुझे कुछ समय की जरूरत थी। दस साल में जिसउतार-चढ़ाव से गुजरा हूं, मुझे लगता है कि अब मैं ज्यादा परिपक्वता के साथदोनों देशों के संबंधों में मजबूती लाने की पहल कर सकूंगा।

हमारे यहा इस समय एक बड़ी मजबूत सरकार है, उनको पूरा बहुमत है, मोदी जी का एकअपना तरीका है, स्पष्ट है। आपकी नजर में पीएम मोदी कैसे नेता हैं ?
मोदी जी और मेरे सोचने के तरीके और केमिस्ट्री में काफी समानताएं हैं।वैसे परिस्थितियों और हमारी आइडियोलॉजी में फर्क है, लेकिन वह अलग बात है।वह विशाल भारत के बहुमत प्राप्त, शक्तिशाली प्रधानमंत्री हैं। पहली बार जबमोदी जी नेपाल आए और संसद में भाषण दिया, तब भी हमारी बातचीत हुई थी। नेपालके इतिहास में बहुत कम ऐसा देखने को मिला है कि एक पड़ोसी देश केप्रधानमंत्री ने यहां आकर इस तरह से लोगों में उत्साह भर दिया हो। मेरीउनसे पहली मुलाकात बहुत अच्छी थी। दूसरी बार भी हमारी जमकर बात हुई। मोदीजी पर मेरा और नेपाली लोगों का भरोसा है। अब इस विश्वास को मजबूत करने परहमारा ध्यान ज्यादा केंद्रित रहेगा।

आप दोनों देशों को गहराई से समझते हैं। बीच-बीच में जो कूटनीतिक दिक्कतें आती हैं, इसमें आपको प्रमुख कारण क्या नजर आता है ?
मोदी जी के दोबारा आने से यहां पर जो उम्मीद जागी थी, जिस तरह का उत्साहथा, उसको हम दोनों को मिलकर कायम रखना चाहिए था पर जो बाद में हुआ, वहदुर्भाग्यपूर्ण है। उससे सबक लेना जरूरी है। अब यह आरोप(प्रत्यारोप नहींसमीक्षा की बात है, ऐसा क्यों हुआरु चूक कहां से हुई-नेपाल की तरफ से याभारत की ओर से। मुझे विश्वास है कि हम दोनों बैठकर यह तय करेंगे कि ऐसीपरिस्थिति फिर न आए। इसके लिए मिलकर काम करने की जरूरत है और वातावरण अब उसदिशा में आगे बढ़ भी रहा है।

ज्यादा गहराई में जाएं तो हम संविधान निर्माण की प्रक्रिया में थे, हमकोशिश कर रहे थे कि सभी को साथ लेकर चलें। मोदी जी ने भी बार-बार यही कहाथा, सभी को पहाड़ को, तराई प्रदेश को सभी पार्टियों, माओवादियों को मिलकरसंविधान बनाने की जरूरत है। लेकिन, संविधान शत-प्रतिशत सहमति से बनाना आसानकाम नहीं है। संविधान फाइनल हुआ तब भी कुछ पार्टियां ख़ासकर मधेस दल असहमतथे। राष्ट्रपति की तरफ से संविधान घोषणा का कार्यक्रम भी बन चुका था। तभीभारत ने सुझाव दिया कि इसे रोक लीजिए। वहीं से गड़बड़ शुरू हुई। जब भारत कीतरफ से घोषणा रोकने का सुझाव आया, तो मैंने कहा कि यह गलत समय है। आपकोपहले आना चाहिए था। इस समय यह संभव नहीं है।

मधेसी इससे बड़े असंतुष्ट हुए। आपको लगता है कि संविधान के कुछ अनुच्छेद संशोधित किए जा सकते हैं ?
यहां पर आंदोलन हुए। बहुत सारे लोगों की जान भी चली गई। मेरे लिए तो यहबहुत दुख की बात है। यह बात बहुत कम लोगों को मालूम है कि मैंने संविधानप्रक्रिया में अपना अलग मत दर्ज कराया था। मधेस आंदोलन से मेरी सहानुभूतिस्वाभाविक है। पहले मैं जिस आंदोलन का संयोजक था, उसमें हाशिये के लोग हीतो शामिल थे। इसलिए मुझे लगता है कि मधेस या थारू या जनजातियों की जोमांगें हैं, उनको पूरा किया जाना चाहिए। भारत जाने से पहले संशोधन प्रस्तावदर्ज करने की मेरी इच्छा है, ताकि वहां भरोसे का माहौल बन सके। कोशिश जारीहै, पता नहीं उस समय तक हम फाइनल कर पाएंगे या नहीं। लेकिन मेरी इच्छा हैकि ऐसा करके भारत जाएं तो और अच्छा संदेश जाएगा।

एक अखबारमे में पढ़ा कि आपने अपने ‘डिप्लोमेट्स’ और कई लोगों से साफ-साफ कहा किमेरी यात्रा पर संशय नहीं होना चाहिए। नेपाल में बार-बार अंदेशे का माहौलक्यों बनता है ?
जब भी कोई प्रधानमंत्री भारत जाने की तैयारी करता है, तो काफी तरंगेंउठती हैं। काफी आशाएं और आशंकाएं उपजती हैं। हम बहुत नजदीक हैं, इसलिए संशयहोता है और विश्वास भी। इसलिए कल मैंने राजनयिकों से कहा कि संदेह कीजरूरत नहीं है। मैं पूरे विश्वास के साथ जा रहा हूं। अच्छा परिणाम आएगा।मैंने यह भी कहा कि किसी भी लीडर पर ज्यादा दबाव डालने से कोई काम नहींहोने वाला। लीडर को नेतृत्व करने दीजिए। कुछ एतिहासिक काम करने हैं, तोलीडर को कुछ रिस्क लेना ही पड़ेगा। इसमें दबाव बनाने पर कोई काम आगे नहींबढ़ेगा।

(मोदी जी ने रिस्क लिया और पाकिस्तान में नवाज शरीफ के घर चले गए। हम सब आश्चर्यचकित रह गए। नेपाल भी वो दो बार आए। उनके मन में पड़ोसियों सेअच्छा रिश्ता बनाने की इच्छा है। पूरे देश की इच्छा है। )


आइडियोलोजिकली आप और मोदी जी, दोनों अलग-अलग हैं। आपके जो सैद्धांतिक रुझान हैं, वे चीनसे बहुत मिलते हैं। क्या चीन कोई मुद्दा है भारत-नेपाल रिश्तों में ?
मुझे नहीं लगता। हम जिस तरह काम कर रहे हैं, उसमें ‘आइडियोलॉजी’ आड़ेनहीं आएगी। दोनों देशों को संबंध मजबूत करने हैं। दो पड़ोसी देशों में अच्छेसंबंध होने चाहिए, इसमें कोई दोराय नहीं है। मोदी जी भी कुछ ‘रिस्क’ लेकर, परंपरा से हटकर कुछ करना चाहते हैं, मैं भी यही चाहता हूं। मुझे डर है किदोनों देशों की कुछ ताकतें शायद इस मंशा को सही तरीके से न समझ पाएं। हम जबआगे जाने की कोशिश करेंगे, तो ये हमें पीछे खींचने की कोशिश करेंगी।
जहां तक चीन की बात है, तो मुझे नहीं लगता है कि चीन कोई आइडियोलॉजीलेकर चल रहा है। उसके लिए तो बिजनेस, प्रॉफिट और इकोनॉमी महत्वपूर्ण है।भारत के साथ भी उनका व्यापार दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है। इसलिए आइडियोलॉजी कीअब कोई बात नहीं है। बात अपने(अपने राष्ट्रीय हितों की है। इसलिए मैं नहींसोचता कि अब पहले जैसी स्थिति रह गयी है।

स्हमारी-आपकीखुली सीमाएं हैं। हमारी सबसे बड़ी खूबी भी यही है। जैसे कल ही एयरपोर्ट परउतरा तो यह देख अच्छा लगा कि भारतीय और नेपाली नागरिकों के जाने का रास्ताएक था और बाकियों का दूसरा। हम एक ही लगते हैं, बातचीत से सबसे। यह खत्मनहीं होना चाहिए। पर बार-बार आशंका होती है। ऐसी रिपोर्ट हैं कि पाकिस्तानकी खुफिया एजेंसी आईएसआई यहां पर बड़ा निवेश कर रही है, खासकर तराई में।दाऊद का भी यहां बड़ा रिलेशन रहा लोगों से। क्या आपके पास ऐसी योजना है किभारत विरोधी गतिविधियां यहां से संचालित न हों ?
मैं स्पष्ट कर दूं कि भारत के विरुद्ध हम नेपाल से किसी गतिविधि कोसंचालित नहीं होने देना चाहते। पहले भी ऐसा नहीं था। किसी भी देश के खिलाफनेपाल की भूमि का प्रयोग नहीं होने देना चाहिए। इस मुद्दे पर आम नेपाली सेलेकर सभी राजनीतिक दलों और सरकार का नज़रिया साफ है। मैं जब दोनों देशों केबीच रिश्तों को मजबूत करने में जुटा हूं तो इन सबको रोकने के लिए भी हमेंमिलकर काम करना चाहिए।

नेपालकी विकास दर डेढ़ प्रतिशत है, आप कौन से ऐसे कदम उठाने जा रहे हैं, जिनसे लोगों को लगे कि उनकी बेहतरी होगी ?
नेपाल के कुदरती संसाधनों के सदुपयोग की जरूरत है। सभी को मालूम है कियहां जल विद्युत की काफी संभावनाएं हैं। पानी का सही तरीके से प्रयोग करनाही हमारी सबसे बड़ी प्राथमिकता है। भारत में भी मैं इस पर बात करूंगा किनेपाल के पानी का कैसे ऊर्जा के लिए उपयोग किया जाए। फिर पर्यटन में काफीसंभावनाएं हैं। हमारे यहां जनकपुर, लुंबिनी, पशुपतिनाथ, मुक्तिनाथ जैसेतीर्थस्थल हैंरु मोदी जी की भी इनमें बड़ी आस्था है। मैं उनको जनकपुर, लुंबिनी और मुक्तिनाथ आने के लिए न्योता देनेवाला हूं। मोदी जी अगर इनतीर्थों पर आए, तो हमारे संबंधों और नेपाल के पर्यटन विकास के लिए बहुतअच्छा रहेगा। कृषि विकास और ‘इन्फ्रास्ट्रक्चर’ की दिशा में भी हमें कामकरने की जरूरत है।

इस्मे भारत के उद्योगपतियों की बड़ी भूमिका हो सकती है, क्या आप उनसे भी मिलेंगे ?
मैं उनसे मिलकर नेपाल में निवेश की अपील करूंगा। कहूंगा कि अब स्थितियांअनुकूल बन गई हैं, आप खुलकर ‘इनवेस्ट’ कीजिए। हम यहां जो ऊर्जा पैदाकरेंगे उसके लिए भारत ही हमारा सबसे बड़ा बाजार होगा। ‘पावर ट्रेड’ के बारेमें तो हमारा समझौता हो भी चुका है। दोनों देशों में जब इधर ऊर्जा ज्यादापैदा होगी, तो उधर जाएगी और उधर से इधर आएगी। इसे लागू करने में जो बाधाएंहैं, उन्हें दूर करने की जरूरत है।
वेरी गुड इनिशिएटिव, वहां पर मेरी लोगों से बात होती है, वो आनाचाहते हैं, लेकिन उनके मन में बहुत हिचकिचाहट है अगर आप ऐसा करेंगे तो।। यहशानदार पहल होगी।
सवालस्आपलम्बे समय तक जंगलों में रहे, निर्वासन में रहे, उस दौरान आपको इस तरह कीकोई कठिनाई तो नहीं हुई जैसे मंडेला जी को हो गया था कि उनकी आंखें ज्यादारोशनी नहीं सहन कर पाती थी, ऐसी दिक्कत तो नहीं है ?
ऐसी कोई दिक्कत नहीं है। मैं जंगल में नहीं रहा। सच कहें तो मैंज्यादातर लोगों के बीच में ही रहता था। ज्यादातर तो मैं इंडिया में दिल्लीसे लेकर मुंबई, मुंबई से लेकर कलकत्ता, कलकत्ता से लेकर बेंगलुरु तक सभीजगह में रहा।
कुछ पर्सनल सवाल-
 

फिट रहने के लिए क्या करते हैं ?हर सुबह व्यायाम करता हूं।
 

जिम जाते हैं या वॉक करते हैं ?
थोड़ा योगा भी करता हूं, फिर टेबल टेनिस खेलता हूं।

आपका पसंदीदा भोजन क्या है ?
मुझे नेपाली खाना, दाल(भात पसंद है।

 आप वेजिटेरियन हैं या नान वेजिटेरियन ?
नॉनवेजिटेरियन।


 ड्रेस कौन सी है ?
अभी जिस ड्रेस में हूं (पैंट-कमीज और नेपाली टोपी)।


परिवार के लिए कैसे समय निकालते हैं ?
मैं जब युद्ध में था, अंडरग्रांउड था उस समय हम अलग(अलग रहते थे। लेकिन, अब परिवार के साथ ही हूं। बेटी(बेटा भी राजनीति में हैं। मेरी पत्नी भीपार्टी की सेंट्रल एडवाइजर हैं। हम अब एक साथ काम भी करते हैं।


आपका फेवरेट मनोरंजन का साधन क्या है ?
स्टूडेंट लाइफ में सिनेमा देखता था।

कुन हीरो पसंद है आपको ?
सभी को देखता हूं लेकिन।।।हीरो में इंडिया की आप पूछ रहे हैं या नेपाल-
इंडिया।।।।
इंडिया की पूछें तो उस समय अमिताभ बच्चन मुझे ज्यादा पसंद थे।

और हीरोइन ?
इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया।


मिस्टर प्रचंड की नजर में मिस्टर प्रचंड ?
वैसे तो प्रचंड नाम मैंने सहज तरीके से रखा था। लेकिन, आंदोलन करते(करतेप्रचंड नाम नेपाल के सभी हाशिये के लोगों को अधिकार संपन्न करने के एकप्रतीक के रूप में हो गया है। इसलिए मुझे प्रचंड के प्रति बहुत प्रेम है।क्योंकि प्रचंड अब नेपाल के सभी हाशिये के लोगों के अधिकार की लड़ाई काप्रतीक ही नहीं है, बल्कि पूरी दुनिया में जो भी समानता और सामाजिक न्यायके लिए काम करते हैं, सभी के लिए सकारात्मक नाम हो गया।


नेपालमे  नदियां हैं। बिहार और उत्तराखंड इससे प्रभावित भी होते हैं। बहुतलम्बे समय से डैम बनाने की बात चल रही है। नेपाल में अगर डैम बने, तो नेपालमें पनबिजली पैदा होगी और वहां बाढ़ नहीं आएगी ?
इसके बारे में हमारी बात होगी।
पटना से काठमांडू फ्लाइट चलती थी पर बंद हो गई, तो उसको शुरू करना चाहेंगे आप ?
शुरू करना अच्छा होगा ऐसा मुझे लगता है। लेकिन, इसमें क्या बाधा है, देखना पड़ेगा।
ओपन बाँर्डरको लेकर जो समस्या आती है, इधर के लोग भी कई बार परेशान होते हैं।इसे लेकर भी आप कोई बातचीत करना चाहेंगे कि बॉर्डर को कैसे मैनेज किया जाए ?
ओपन बॉर्डर तो है, हमारे संबंध में निकटता इसी में है। लेकिन उसके अंदरजो गलत चीज होने का खतरा है, उसको कंट्रोल करने में दोनों देशों को मिलकरकाम करना पड़ेगा।
धन्यवाद। आपका बहुत समय लिया।


प्रचंड क्यों
पुष्पकमल दाहाल ‘प्रचंड’ राजनीतिक अस्थिरता से जूझ रहे नेपाल की सबसेबड़ी उम्मीद हैं। उम्मीदें उस वक्त भी थीं, जब राजशाही की समाप्ति के बाद द्दण्ण्ड में वह हिमालय की गोद में बसे इस देश के पहले प्रधानमंत्री बने थे।वामपंथी गुरिल्ला युद्ध से अपना आधार फैलाकर प्रधानमंत्री पद तक आए प्रचंडअपने प्रबल अमेरिका और भारत विरोध के लिए ही चर्चित हुए। नौ महीने के अंदरही उन्हें यह पद छोड़ना पड़ा और नेपाल में अस्थिरता के दौर की शुरुआत हुई। इसबीच आठ प्रधानमंत्री बदल गए और दायित्व फिर प्रचंड के कंधों पर आ गया। इसबार उनके तेवर पहले की तरह भारत विरोधी नहीं हैं। नेपाल को उनसे उम्मीदेंइसलिए भी हैं कि उनके पास एक बड़ा जनाधार और काडर बेस वाली पार्टी है।दुनिया को उम्मीदें इसलिए हैं कि वह इस आधार का इस्तेमाल करते हुए नेपाल कोराजनीतिक स्थिरता दे सकते हैं। वह मधेसियों की बड़ी आबादी के असंतोष को दूरकरने में भी बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। साथ ही भारत-नेपाल संबंधों का एकनया अध्याय शुरू हो सकता है।

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